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Monday, 29 February 2016

वर्मी कम्पोस्टिंग-मैनुवल .:: Literature - All World Gayatri Pariwar

http://literature.awgp.org/hindibook/yug-nirman/VerniCompostingManual.51


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ORGANIC FARMING :: Special technologies :: Coir compost

http://agritech.tnau.ac.in/org_farm/orgfarm_vermicompost.html


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VERMICULTURE

http://agri.and.nic.in/vermi_culture.htm


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किसान हितैषी

किसानों का बजट 

०००००००००००००

किसान हितैषी बजट के लिये मोदी जी और उनकी सरकार को साधुवाद हाँ, किसानों के लिये यह अभी नाकाफ़ी है इस देश में एक भी किसान आत्महत्या करे तब हम सफल हों

राजकुमार सचान होरी 

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Sunday, 28 February 2016

होरी कहिन - किसान पर

होरी कहिन
०००००००००००००००
१--
बस बलिदान जवान का, बस किसान का त्याग ।
दोऊ दुखिया देश में, खेलें पल पल आग ।।
खेलें पल पल आग , खेत सीमा पर दोऊ ।
इनकी सुधि भी लें न , कभी भारत में कोऊ ।।
करें आत्महत्या किसान तो , मरें जवान वहाँ ।
राष्ट्र इन्हीं के बलबूते पर , इनका दुखी जहाँ ।।
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राजकुमार सचान होरी
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किसान - अन्नदाता-२

किसान - अन्नदाता
(भाग -२)
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? शोषकों के शोषण से आकंठ त्रस्त पर भ्रम में मस्त कि वह " अन्नदाता " है । अन्नव्यवसाई या अन्न विक्रेता नाम हमने इसलिये नहीं दिये कि वह हानि लाभ की सोचे ही नहीं बस बना रहे अन्नदाता । लाभ हानि का गणित किसान को समझ में नहीं आना चाहिये ।जैसे ही समझ में आयेगा या तो वह खेती छोड़ देगा या खेती में ही मर खप जायेगा ।
अन्न व्यवसायी , अन्न विक्रेता , अन्न उत्पादक जैसे नामकरण शहरी धूर्तों , नेताओं और पाखण्डी लेखकों ,कवियों ने उसे दिये ही नहीं ।उसे तो अन्नदानी की श्रेणी में रख कर इन सबने सदियों से ठगा ही । तभी धूर्तो की प्रशंसा से ख़ुश होकर वह अधिक लागत लगा , अपना ख़ून पसीना लगा अपना अन्न , दाता के रूप में देता रहा । दान भाव से देता रहा अपना अन्न लहू से पैदा हुआ । वाह रे अन्नदानी !! किये रहो खेती , भूखों मरते रहो ,ग़रीबी में ही जियो ,मरो । जब सब्र टूट जाय कर लो आत्म हत्या किसी को क्या लेना देना , शहरी धूर्त यही कहेंगे कि पारिवारिक कलह से मरा ,बीमारी से मरा । सैनिक के मरने पर तो देश गमगीन भी होता है , सम्मान में क़सीदे भी पढ़ता है पर तेरे मरने पर जय किसान भी कोई नहीं कहता । कुछ समझे महामहिम अन्नदाता जी ??
कोई भी व्यवसायी घाटे में व्यवसाय अधिक समय तक नहीं कर सकता , किसान कर सकता है मरते दम तक । शहरी को खेती करते देखा है ? नहीं न ? है कोई माँ का लाल जो किसान की तरह काम करे ~ लागत अधिक लगाये , लगातार घाटा उठाये पर करे खेती ही । जीना यहाँ , मरना यहाँ की नियति में ।
सरकारें और शहरी धूर्त ,नेता ,व्यवसायी ,सब के सब लगे रहते हैं कि १-अनाज के दाम न बढ़ें और २- किसान खेती न छोड़े ,गाँव न छोड़े । नहीं तो भारी अनर्थ हो जायेगा । कहाँ मिल पायेंगे देश को ये 90 करोड़ बंधुआ किसान । चिन्ता उसके मरने से अधिक हमारे मरने की है , हम तो बंधुआ मज़दूर और बंधुआ किसान के पैरोकार जो ठहरे ।पढ़े लिखों के तर्क सुनिये किसान अनाज नहीं पैदा करेगा तो हम खायेंगे क्या ? देश क्या खायेगा ? जैसे पेट काट कर खिलाने का ठेका किसानों ने ले लिया है । स्वयं भूखों मर कर हम परजीवियों को ज़िन्दा रखने का पुण्य काम उसी के लिये है । हम तुम्हारी फ़सलो के दाम नहीं बढ़ायेंगे तुम मर जाओ ठीक पर देश नहीं मरना चाहिये । २०% को ज़िन्दा रखने के लिये ८० % की क़ुर्बानी ।
( क्रमश: )
राजकुमार सचान होरी
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किसान -अन्नदाता-१

किसान -अन्नदाता
॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰
किसान की होती है भूमि , जिस पर वह खेती करता है और ठीक वैसे ही भूमि का होत है किसान जो भूमि के लिये होता है ,भूमि के द्वारा होता है । उसका सम्पूर्ण अस्तित्व भूमि के लिये होता है । भूमि और किसान अन्योन्याश्रित हैं दोनो एक दूसरे पर निर्भर , एक दूसरे से ज़िन्दा ।किसान से भूमि छीन लो किसान मर जायेगा , भूमि से किसान छीन लो भूमि मर जायेगी -- एकदम बंजर ।किसान और भूमि का यह सदियों पुराना संबद्ध चलता आया है ।
इस मधुर संबंध में जब तब पलीता लगाया है किसी ने तो वे हैं भूमाफिया और भगवान । भूमाफ़ियाओं में सबसे ऊँचा बड़ा स्थान सरकारों का होता है , हाँ ग़ैरसरकारी भूमाफिया भी होते हैं जो संख्या में अधिक हैं और वे ही कभी सरकारों से मिल कर तो कभी अकेले दम पर ही भूमि को हथियाते हैं , कब्जियाते हैं । उधर भगवान के तो कहने ही क्या -कभी जल मग्न कर भूमि कब्जियाई तो कभी सुखा सुखा कर भूमि और किसान की दुर्गति करदी । कभी गोले की तरह ओले बरसा दिये तो कभी कोरें का बाण चला दिया । बस भगवान की मर्ज़ी ।कभी कभी तो एक साथ इतने सारे अस्त्र शस्त्र चला देता है भगवान कि किसान और भूमि दोनो को इतना घायल कर देता है कि किसान और भूमि दोनो गले लग लग कर मरते हैं ।
अन्नदाता -- एक अन्य नाम है ।किसान का कथित सम्मान बढ़ाने वाला नाम । जैसे प्राणदाता , दानदाता या जीवनदाता ।
क्रमश: ------


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Monday, 22 February 2016

ये नेता ?

            देश द्रोहियों के समर्थकों को खुली चिट्ठी 
००००००००००००००००००००००००००००००००००००
       मेरे देश के धृतराष्ट्रों ,
        तुम्हें नहीं याद होगा देश का स्वतन्त्रता संग्राम , नहीं याद होगा जलियाँवाला बाग़ , नहीं याद होगें सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु , तुम्हें नहीं याद होगा चन्द्र शेखर आज़ाद ,नहीं याद होंगे लाला लाजपत राय , नहीं याद होंगे लाल, बाल ,पाल, नहीं याद होगा १८८५ से कांग्रेस का आंदोलन, नहीं याद होगा तिलक का कहना -- स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है । तुम्हें तो नहीं याद होगा पहला स्वतन्त्रता संग्राम , नही याद होगी रानी लक्ष्मी बाई , न याद होंगे - नाना साहब , तात्या टोपे ,बहादुर साह ज़फ़र ।
               तुम्हें नहीं याद होंगे सुभाष चन्द्र बोष , फिर उनकी आज़ाद हिन्द फ़ौज तो भला कैसे याद होगी !? तुम्हें भला गाँधी ,नेहरू, अम्बेडकर तो कहाँ याद होंगे ? राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाले और उसे अखंड बनाने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल भला तुम्हें कहाँ याद होंगे ? कश्मीर की पहली ही जंग ४७-४८ भला तुम्हें कैसे याद होगी? १९६२ की चीन से लड़ाई, १९६५ और १९७१ की पाकिस्तान से लड़ाइयाँ तुम भला कैसे और क्यों याद रखोगे ? इंदिरा की बांग्लादेश की लड़ाई और उनका बलिदान भी तुम क्यों याद रखोगे ? कारगिल को भूल गये । कश्मीर के लिये रोज रोज शहीद होते जवान तुम्हें भला कैसे याद रहेंगे ? तुम तो अंधे जो हो , धृतराष्ट्र जो ठहरे ।
             सत्ता के मोह में ग्रस्त धृतराष्ट्र । वोटों के लिये राष्ट्र के विरोधियों के समर्थक जन्मान्ध नेताओं तुम्हें न तो देश के लिये प्राण अर्पण करते सैनिक दिखाई देते हैं , न दिखाई देता है हर साल हज़ारों ललनाओं की उजड़ती माँग । विधवाओं के विलाप तुम्हें सुनाई नहीं देते ,क्योंकि तुम अंधे ही नही बहरे भी हो । हर साल माओं की उजड़ती गोद से भी तुम्हें क्या लेना देना ? तुम्हारे लिये तो राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र वाद भी पार्टियों में बँटा है । कांग्रेसी राष्ट्र वाद, भगवा राष्ट्र वाद, साम्यवादियों ,नक्सलवादियों , कश्मीरियों का राष्ट्र वाद । लालू, नीतीश , येचुरी , केजरी का राष्ट्र वाद । 
             न जाने कितने राष्ट्र वाद और तमीज़ दमड़ी भर की नहीं कि राष्ट्र वाद तो एक है जिसे शहीद होने वाले सैनिक से ही आख़िरी साँसों के समय पूछ लेते । पूछ लेते तो शहीद की माँ से जो अपने दूसरे लालों को मर मिटने के लिये सीमा पर फिर भेजने को तैयार है । अंधो ! संसद में हमले के नायक तुम्हारे आदर्श हो गये अफ़ज़ल तुम्हारे गुरू हो गये ।मक़बूल तुम्हारे हीरो हो गये ! देश को खंड ,खंड करने के नारे लगाने वाले , टुकड़े करने की कश्में खाने वाले तुम्हारे नायक हो गये । कश्मीर, केरल फिर कल बंगाल की आज़ादी माँगने वाले ही नहीं छीन कर लेने वाले उद् घोष तुम्हारे आदर्श हो गये ? 
                तुम सब के सब इतने गिर गये , पतित हो गये कि राष्ट्रद्रोह का क़ानून ही भूल कर दूसरी व्याख्या करने लगे ! आख़िर क्यों ? क्यों ? क्या तुम्हें सारे मुसलमान आतंकी लगते हैं जो सबका समर्थन लेने के लिये चन्द आतंकियों ,देशद्रोहियों का समर्थन करने लगे । तुम भूल गये मुस्लिम राष्ट्र भक्तों को ! तुम सियाचिन मे हनुमनथप्पा के साथ शहीद होने वाले उस सच्चे मुसलमान सपूत की शहादत भी भूल गये अंधो !  तुम व्यक्तिगत स्वतन्त्रता , अभिव्यक्ति की आज़ादी वालों भूल गये कि देश ही नहीं बचेगा तो कौन सी अभिव्यक्ति की आज़ादी ? ग़ुलामों की कोई आज़ादी होती है ?
               धर्म, जाति के नाम पर बाटने वालों मत भूलो कि हम कमज़ोर हुये तो देश कमज़ोर होगा , टूट जायेगा , खंड खंड हो जायेगा । कश्मीर के चन्द कट्टर मुसलमान बहके हुये हैं और कश्मीर के पंडितों को खदेड़ कर किस कश्मीरियत की बात कर रहे हैं ? उन्हीं के अनुयायी जे एन यू और देश में अनेक जगह फैले हैं जिन देशद्रोहियों का समर्थन ये कलियुगी धृतराष्ट्र कर रहे हैं ।
           देश में हम जिन सैनिकों की शहादत से अभिव्यक्ति की आज़ादी मनाते हैं , संसद में बैठ कर आतंकी सोच का समर्थन करते हैं यह कैसे सम्भव हो ?अगर सैनिक क़ुर्बानी न दें । इन अंधों ने ही कश्मीर समस्या पर या तो मौन साध कर या उनका तुष्टीकरण कर इतना मर्ज़ बढ़ा दिया है कि आज जब देश को एक होना चाहिये तब भी बँटा है । यह वही जे एन यू है जहाँ कारगिल के बहादुर सैनिकों को इस लिये लहूलुहान किया गया था कि उन्होंने हिन्द पाक मुशायरे में पाक शायर की भारत विरोधी कविता का विरोध किया था । यह वही जे एन यू है जहाँ नक्सली मुठभेड़ में मारे गये ७६ जवानों की मौत पर उत्सव मनाया गया था जब सारा देश दुखी था । यह वही जे एन यू है जहाँ हिन्दू देवी देवताओं की नंगी तश्वीरें लगाई गयीं थीं । पर अफ़सोस इन देशद्रोही घटनाओं पर तत्कालीन सरकारों नें कुछ भी कार्यवाही नहीं की थी और मर्ज़ बढ़ता गया ।
          जिस अफ़ज़ल गुरू को फाँसी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति की संस्थाओं की सम्पूर्ण प्रक्रियाओं के बाद दी गयी थी वह कांग्रेस की सरकार का समय था पर वही कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल और उनकी मंडली देश को खंड खंड करने वालों की तरफ़दारी करने लगी । उनके लिये अफ़ज़ल शहीद हो गया । क्यों ?? अगर इन दिग्भ्रमित नेताओं को यह मुग़ालता हो कि इससे मुसलमानों का वोट मिलेगा तो मतलब यह हुआ कि वे सारे मुस्लिम समाज को अफ़ज़ल गुरुओं ,का समर्थक मानते हैं । यह सोच ग़लत है । कुछ राष्ट्र विरोधी तो हर समुदाय में हैं यहाँ भी हैं वहाँ भी पर जो अंधे राष्ट्र द्रोहियों का सम्मान करते हैं , उन्हे बचाते हैं वे भी देशद्रोह ही कर रहे हैं सज़ा उन्हे भी मिलनी चाहिये ।
        राहुल और उनके साथी राष्ट्रवाद भाजपा से न सीखें तो कोई बात नहीं अपनी दादी इंदिरा गाँधी से ही सीख लें जिन्होंने १९७१ की भारत पाक लड़ाई में बांग्लादेश बनाया और पाक को हज़ार घाव दिये । मार्क्सवादियों के राष्ट्रवाद पर कुछ कहते भी शर्म आती है जिन्होंने १९६१ के भारत चीन युद्ध में चीन का समर्थन किया था । देश के स्वाधीनता आन्दोलन में किसके साथ थे इनसे ही पूछिये । अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक ये वाम पंथी आपातकाल के समर्थक  क्यों थे? इनसे पूछिये ।
        बहुत हो चुकी धृतराष्ट्रीय राजनीति , इसको बन्द करिये अगर देश का नमक खाते हो तो । हाँ, अगर तुम्हारे लिये नमक, अन्न, पानी विदेश से आता है तो देश अभी सक्षम है तुम्हें भी देखेगा । क़ुर्बानियों की ज़रूरत तब भी थी , अब भी है -- हम तैयार हैं धृतराष्ट्रो !!
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           राजकुमार सचान होरी 
        अध्यक्ष - बदलता भारत 
www.horionline.blogspot.com
वरिष्ठ साहित्यकार , समाजसेवी ।

नेताओं का पाखंड

            देश द्रोहियों के समर्थकों को खुली चिट्ठी 
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       मेरे देश के धृतराष्ट्रों ,
        तुम्हें नहीं याद होगा देश का स्वतन्त्रता संग्राम , नहीं याद होगा जलियाँवाला बाग़ , नहीं याद होगें सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु , तुम्हें नहीं याद होगा चन्द्र शेखर आज़ाद ,नहीं याद होंगे लाला लाजपत राय , नहीं याद होंगे लाल, बाल ,पाल, नहीं याद होगा १८८५ से कांग्रेस का आंदोलन, नहीं याद होगा तिलक का कहना -- स्वतन्त्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है । तुम्हें तो नहीं याद होगा पहला स्वतन्त्रता संग्राम , नही याद होगी रानी लक्ष्मी बाई , न याद होंगे - नाना साहब , तात्या टोपे ,बहादुर साह ज़फ़र ।
               तुम्हें नहीं याद होंगे सुभाष चन्द्र बोष , फिर उनकी आज़ाद हिन्द फ़ौज तो भला कैसे याद होगी !? तुम्हें भला गाँधी ,नेहरू, अम्बेडकर तो कहाँ याद होंगे ? राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाले और उसे अखंड बनाने वाले लौह पुरुष सरदार पटेल भला तुम्हें कहाँ याद होंगे ? कश्मीर की पहली ही जंग ४७-४८ भला तुम्हें कैसे याद होगी? १९६२ की चीन से लड़ाई, १९६५ और १९७१ की पाकिस्तान से लड़ाइयाँ तुम भला कैसे और क्यों याद रखोगे ? इंदिरा की बांग्लादेश की लड़ाई और उनका बलिदान भी तुम क्यों याद रखोगे ? कारगिल को भूल गये । कश्मीर के लिये रोज रोज शहीद होते जवान तुम्हें भला कैसे याद रहेंगे ? तुम तो अंधे जो हो , धृतराष्ट्र जो ठहरे ।
             सत्ता के मोह में ग्रस्त धृतराष्ट्र । वोटों के लिये राष्ट्र के विरोधियों के समर्थक जन्मान्ध नेताओं तुम्हें न तो देश के लिये प्राण अर्पण करते सैनिक दिखाई देते हैं , न दिखाई देता है हर साल हज़ारों ललनाओं की उजड़ती माँग । विधवाओं के विलाप तुम्हें सुनाई नहीं देते ,क्योंकि तुम अंधे ही नही बहरे भी हो । हर साल माओं की उजड़ती गोद से भी तुम्हें क्या लेना देना ? तुम्हारे लिये तो राष्ट्र प्रेम, राष्ट्र वाद भी पार्टियों में बँटा है । कांग्रेसी राष्ट्र वाद, भगवा राष्ट्र वाद, साम्यवादियों ,नक्सलवादियों , कश्मीरियों का राष्ट्र वाद । लालू, नीतीश , येचुरी , केजरी का राष्ट्र वाद । 
             न जाने कितने राष्ट्र वाद और तमीज़ दमड़ी भर की नहीं कि राष्ट्र वाद तो एक है जिसे शहीद होने वाले सैनिक से ही आख़िरी साँसों के समय पूछ लेते । पूछ लेते तो शहीद की माँ से जो अपने दूसरे लालों को मर मिटने के लिये सीमा पर फिर भेजने को तैयार है । अंधो ! संसद में हमले के नायक तुम्हारे आदर्श हो गये अफ़ज़ल तुम्हारे गुरू हो गये ।मक़बूल तुम्हारे हीरो हो गये ! देश को खंड ,खंड करने के नारे लगाने वाले , टुकड़े करने की कश्में खाने वाले तुम्हारे नायक हो गये । कश्मीर, केरल फिर कल बंगाल की आज़ादी माँगने वाले ही नहीं छीन कर लेने वाले उद् घोष तुम्हारे आदर्श हो गये ? 
                तुम सब के सब इतने गिर गये , पतित हो गये कि राष्ट्रद्रोह का क़ानून ही भूल कर दूसरी व्याख्या करने लगे ! आख़िर क्यों ? क्यों ? क्या तुम्हें सारे मुसलमान आतंकी लगते हैं जो सबका समर्थन लेने के लिये चन्द आतंकियों ,देशद्रोहियों का समर्थन करने लगे । तुम भूल गये मुस्लिम राष्ट्र भक्तों को ! तुम सियाचिन मे हनुमनथप्पा के साथ शहीद होने वाले उस सच्चे मुसलमान सपूत की शहादत भी भूल गये अंधो !  तुम व्यक्तिगत स्वतन्त्रता , अभिव्यक्ति की आज़ादी वालों भूल गये कि देश ही नहीं बचेगा तो कौन सी अभिव्यक्ति की आज़ादी ? ग़ुलामों की कोई आज़ादी होती है ?
               धर्म, जाति के नाम पर बाटने वालों मत भूलो कि हम कमज़ोर हुये तो देश कमज़ोर होगा , टूट जायेगा , खंड खंड हो जायेगा । कश्मीर के चन्द कट्टर मुसलमान बहके हुये हैं और कश्मीर के पंडितों को खदेड़ कर किस कश्मीरियत की बात कर रहे हैं ? उन्हीं के अनुयायी जे एन यू और देश में अनेक जगह फैले हैं जिन देशद्रोहियों का समर्थन ये कलियुगी धृतराष्ट्र कर रहे हैं ।
           देश में हम जिन सैनिकों की शहादत से अभिव्यक्ति की आज़ादी मनाते हैं , संसद में बैठ कर आतंकी सोच का समर्थन करते हैं यह कैसे सम्भव हो ?अगर सैनिक क़ुर्बानी न दें । इन अंधों ने ही कश्मीर समस्या पर या तो मौन साध कर या उनका तुष्टीकरण कर इतना मर्ज़ बढ़ा दिया है कि आज जब देश को एक होना चाहिये तब भी बँटा है । यह वही जे एन यू है जहाँ कारगिल के बहादुर सैनिकों को इस लिये लहूलुहान किया गया था कि उन्होंने हिन्द पाक मुशायरे में पाक शायर की भारत विरोधी कविता का विरोध किया था । यह वही जे एन यू है जहाँ नक्सली मुठभेड़ में मारे गये ७६ जवानों की मौत पर उत्सव मनाया गया था जब सारा देश दुखी था । यह वही जे एन यू है जहाँ हिन्दू देवी देवताओं की नंगी तश्वीरें लगाई गयीं थीं । पर अफ़सोस इन देशद्रोही घटनाओं पर तत्कालीन सरकारों नें कुछ भी कार्यवाही नहीं की थी और मर्ज़ बढ़ता गया ।
          जिस अफ़ज़ल गुरू को फाँसी सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रपति की संस्थाओं की सम्पूर्ण प्रक्रियाओं के बाद दी गयी थी वह कांग्रेस की सरकार का समय था पर वही कांग्रेस के सर्वेसर्वा राहुल और उनकी मंडली देश को खंड खंड करने वालों की तरफ़दारी करने लगी । उनके लिये अफ़ज़ल शहीद हो गया । क्यों ?? अगर इन दिग्भ्रमित नेताओं को यह मुग़ालता हो कि इससे मुसलमानों का वोट मिलेगा तो मतलब यह हुआ कि वे सारे मुस्लिम समाज को अफ़ज़ल गुरुओं ,का समर्थक मानते हैं । यह सोच ग़लत है । कुछ राष्ट्र विरोधी तो हर समुदाय में हैं यहाँ भी हैं वहाँ भी पर जो अंधे राष्ट्र द्रोहियों का सम्मान करते हैं , उन्हे बचाते हैं वे भी देशद्रोह ही कर रहे हैं सज़ा उन्हे भी मिलनी चाहिये ।
        राहुल और उनके साथी राष्ट्रवाद भाजपा से न सीखें तो कोई बात नहीं अपनी दादी इंदिरा गाँधी से ही सीख लें जिन्होंने १९७१ की भारत पाक लड़ाई में बांग्लादेश बनाया और पाक को हज़ार घाव दिये । मार्क्सवादियों के राष्ट्रवाद पर कुछ कहते भी शर्म आती है जिन्होंने १९६१ के भारत चीन युद्ध में चीन का समर्थन किया था । देश के स्वाधीनता आन्दोलन में किसके साथ थे इनसे ही पूछिये । अभिव्यक्ति की आज़ादी के समर्थक ये वाम पंथी आपातकाल के समर्थक  क्यों थे? इनसे पूछिये ।
        बहुत हो चुकी धृतराष्ट्रीय राजनीति , इसको बन्द करिये अगर देश का नमक खाते हो तो । हाँ, अगर तुम्हारे लिये नमक, अन्न, पानी विदेश से आता है तो देश अभी सक्षम है तुम्हें भी देखेगा । क़ुर्बानियों की ज़रूरत तब भी थी , अब भी है -- हम तैयार हैं धृतराष्ट्रो !!
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           राजकुमार सचान होरी 
        अध्यक्ष - बदलता भारत 
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Monday, 15 February 2016

किसान उन्नति कैसे करें ??

किसान उन्नति कैसे करें ??
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आज जब किसानों की कुशलक्षेम पूछने वाला कोई नहीं है , घड़ियाली आँसू बहाने के सिवा । तब मैंने बदलता भारत संस्था की ओर से अभियान चलाया है उनको अपने पैरों खड़े करने का । सबसे पहले कड़े निर्णय लेने होंगे उन्हें ----
१-- अपनी ज़मीन का एक हिस्सा बेच कर पास के क़स्बे में आवास बनाना होगा वहीं से अपनी कृषि पैदावार की मार्केटिंग करनी होगी अच्छे दाम मिलेंगे ।
२-- नगरों में आने पर कोई और व्यवसाय मिलेगा ।
३-- क़स्बों मे रहने से परिवार का स्तर उठेगा ।
४-- खेती की नई तकनीकें सीख सकेंगे ।
५-- शहरों में बसने से सम्मान बढ़ेगा , किसान होने का अपमान मिटेगा ।
६-- शहरी अपने बराबर मानेंगे ।
आइये आप भी आगे आइये । बहुत किसान इस रास्ते चल चुके हैं और अपना भविष्य बना रहे हैं । आप भी अपना भविष्य सुरक्षित कीजिये ।
आत्म हत्या की नौबत क्यों आये ??
०००००००००००००००००
राजकुमार सचान होरी
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Profitable Fast Growing Trees - Gmelina arborea, Melia Dubia, Bamboo, Casuarina | Innovative farming solutions

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Bio Fertilizers, Bio Organic Fertilizer, Bio Fertilizers Suppliers, Exporters, Advantages

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Saturday, 13 February 2016

भारतीय किसान : Teak plantations

भारतीय किसान : Teak plantations: किसान करोड़पति कैसे बने  ------------------------------  आप छोटे किसान हैं तो आपके पास एक हेक्टेयर जमीन में टीक  (सागौन ) लगाने का लाभ...

भारतीय किसान : सागौन की फ़सल

भारतीय किसान : सागौन की फ़सल: सागौन की फ़सल
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आज मैं एक हेक्टेयर खेत में टीक ( सागौन) की खेती करने पर अर्थ शास्त्र की बात करूँगा । जैसे आप बैंक में फिक्स...

सागौन की फ़सल

सागौन की फ़सल
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आज मैं एक हेक्टेयर खेत में टीक ( सागौन) की खेती करने पर अर्थ शास्त्र की बात करूँगा । जैसे आप बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट की स्कीम समझते हैं वैसे ही मैं इसे समझाता हूँ ।
मात्र एक हेक्टेयर में टीक 2 मीटर की दूरी पर प्रारम्भ में लगाने हैं कुल 2500 पौधों की ज़रूरत पड़ेगी । आज कल वन विभाग या प्राइवेट कम्पनियाँ पौधे उपलब्ध कराती हैं । इनमें अच्छी प्रजाति के पौधे लगायें । खेत में जल भराव नहीं होना चाहिये । गहरे खेतों में टीक न लगायें ।
अप्रैल से लेकर सितम्बर तक पहले गड्ढे तैयार कर और उनमें गोबर की खाद तथा डीएपी डाल कर टीक लगायें । पहले तीन वर्षों तक गर्मियों में सिंचाई करने की आवश्यकता है । दीमक का ट्रीटमेंट भी आरम्भ में ही करें ।
एक हेक्टेयर में कुल 2500 पौधे की क़ीमत सरकारी में कम लगभग 20 रुपया प्रति पौधा और प्राइवेट में 50 रुपये । कुल क़ीमत क्रमश:50 हज़ार रुपये या 125000 रुपये ।
टीक की वृद्धि जलवायु मिट्टी पर भी निर्भर है , लेकिन 20 वर्षों से लेकर 40 वर्षों तक टीक अच्छी क़ीमत दे देते हैं । जो 2500 पौधे आरम्भ में लगाये थे उनकी छटाई के साथ साथ कमज़ोर पौधों को जड़ से हटाना ( thining) भी होता है इन पौधों की लकड़ी भी बिकती रहती है । टीक की लकड़ी किसी भी उम्र के पौधे की बिक जाती है । 3 और 4 वर्षों तक कम करने से शेष मज़बूत पौधे लगभग 1000 (एक हज़ार ) को पूर्ण बढ़ने दीजिये , जिन्हें आपको निर्धारित अवधि के बाद बेचने हैं ।
घनफीट यानी लकड़ी की मात्रा के अनुसार इनकी क़ीमत पर पेड़ रु 30,000 (तीस हज़ार ) से लेकर रु 80,000 हज़ार तक कम से कम हो जायेगी । एवरेज मान लें तो गणना कर सकते हैं 50,000 रुपये प्रति पेड़ । इस तरह कुल रुपये जो आपको मिलेंगे वह होंगे 50000000 रुपये यानी 5 करोड़ रुपये ।
यदि आप युवा अवस्था में लगाते हैं तो स्वयं अन्यथा आपके बच्चों को इतनी भारी भरकम राशि मिलेगी वह भी White money .
देर किस बात की आइये करोड़पति बन जाइये आप भी ।
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राज कुमार सचान होरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बदलता भारत
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Friday, 12 February 2016

Hori KAHIN

           होरी कहिन 

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फूल और फल अब रहे,चहुँ दिशि में नक्काल

होरी   अपने   देश   में , बड़े   बड़े    भोकाल ।।

बड़े   बड़े  भोकाल , नक़ल  में  अकल  लगाते

दुनियाभर  का माल ,नक़ल  में  असल  बनाते ।।

कवि लेखक भी नक़ली,नक़ली नक़ली हैं स्कूल

सूँघ रहे हम जिन्हें चाव से , वे भी नक़ली फूल ।।

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पढ़ लिख कर डिग्री लिये , फिरते चारों ओर

पढ़े  लिखों  में  बढ़  रही , बेकारी   घनघोर ।।

बेकारी  घनघोर , डिग्रियाँ  भी कुछ   जाली

असली नक़ली खोखली कुछ तो चप्पे वाली ।।

स्किल   डेवलप   एक  रास्ता  , तू  आगे बढ़

स्किल   डेवलप  कोर्सों   को ही ,अब तू पढ़ ।।

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सत्तर प्रतिशत गाँव में ,अब भी देश सचान

कुछ भूखे नंगे मिलें , कुछ के निकले  प्रान ।।

कुछ के  निकले  प्रान , मगर   वे  हैं बेचारे

बस शहरों   की राजनीति के , मारे   सारे ।।

फ़सलों की लागत कम होती ,नहीं कभी भी।

अब  गाँवों  की दशा ,दुर्दशा  हाय   ग़रीबी ।।

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सभी अन्नदाता दुखी , तिल तिल मरे किसान

देश बढ़   रहा शान  से , कहते  मगर सचान ।।

कहते   मगर  सचान , देश में   ख़ुशहाली  है

यह किसान को सुन सुन कर , लगती गाली है।।

होरी  अब   भी गोदानों की , वही   कहानी  है

धनिया , गोबर वही , गाँव का वह ही पानी है ।।

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राज कुमार सचान होरी 

१७६ अभयखण्ड - इंदिरापुरम , गाजियाबाद 

horirajkumar@gmail.com




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Why Are Indian Farmers Committing Suicide and How Can We Stop This Tragedy?, by Vandana Shiva

http://www.voltairenet.org/article159305.html


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Saturday, 6 February 2016

किसान दुखी क्यों?

किसान बदलता नहीं है अपनी आदतें । अगर वह अपने खेत की मेंडों में ही यूकीलिप्टस लगाने लगे तो उसे एक हेक्टेयर में २०० पेड़ों का ८ वर्षों मे लगभग ८ लाख रुपये मिल जाँय , अर्थात एक वर्ष में एक लाख ।

होरी 

Madhumakhi Palan - Honey Bee Farming - मधुमक्खी पालन

http://www.hindiremedy.com/madhumakhi-palan-honey-bee-farming/


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Village Govt

                       3-           ग्राम सरकार  और नगर सरकार

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(3) ग्राम सरकार और नगर सरकार ़़़़  73 वाँ और 74 वाँ संविधान संशोधन  लागू कराना

       भारत के जनमानस को ध्यान में रख अपनी जनता के सशक्तीकरण के लिये कभी देश की संसद ने बड़े उत्साह और राष्ट्र के प्रति पूर्ण निष्ठा की पवित्र भावना से गाँवों और नगरों को अपनी सरकार बनाने के लिये 73 वाँ और 74 वाँ संविधान संसोधन करते हुये देश कीजनता को  है अधिकार दिया था

                                 आज स्थिति यह हैै इतने महत्वपूर्ण संविधान संसोधन हम अभी तक सम्पूर्ण देश में लागू नहीं कर पाये हैं जिन प्रदेशोंने इन्हें लागू किया है वहाँ के परिणाम बड़े अच्छे  , उत्साहवर्धक रहे हैं परन्तु कुछ प्रदेश इन्हें अपने अधिकारों में हनन समझकर लागू नहीं कर रहे हैं जिन प्रदेशों में इन्हें लागू नहीं किया गया उनकी स्थिति विकास की दृष्टि से असन्तोषजनक बनी हुयी है

                    देश की आधी जनता ग़रीबी रेखा के नीचे है ,विकास की दौड़ में अत्यन्त पीछे जनता की नियम क़ानून बनानें और संसाधनों के विकास में कोई भागीदारी नहीं है जबकि उक्त संसोधनों के पीछे जनता जनार्दन को सशक्त बनाने की भावना थी

       बदलता भारत/  इंडिया चेंजेज़ ( INDIA CHANGES ) ने इस प्रकरण में देश की नब्ज जानने की कोशिश की हैै़़़़ ़़़देश। के समस्त प्रधान , पंचायतों के प्रतिनिधि , ग्रामीण जनता 73 वाँ संसोधन लागू कराना चाहती है इसके लिये समय समय पर आंदोलन भी होते रहते हैं इसी तरह 74 वाँ संसोधन नगर निकायों के जनता के प्रतिनिधि - पार्षद और महापौर तथा नगरीय जनता लागू कराना चाहती है

                          आइए जनभावनाओं के अनुरूप देश की समस्त जनता की भलाई के लिये बिना किसी और विलम्ब के उक्त दोनों संसोधनों को पूर्ण निष्ठा से लागू करें। हम यह भी माँग करते हैं कि संसद एक संसोधन के द्वारा इन्हें स्वैच्छिक के स्थान पर अनिवार्य कर दे। जनता के इतने महत्वपूर्ण अधिकार राज्य सरकारों के भरोसे छोड़े जाँय

          जनता के द्वारा जनता की सरकार के लिये भले ही देशव्यापी आंदोलन क्यों छेड़ना पड़े

                 National Coordinator --Raj Kumar Sachan Hori 

                इंडिया चेंजेज़ ( INDIA CHANGES )(बदलता भारत )

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Eid -- indiachanges2012@gmail.com , indiachanges2013@gmail.com



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Thursday, 4 February 2016

दोहे

                       बदलता  भारत  के  दोहे
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(१)परिवर्तन की लीजिये , सदा श्वास  प्रश्वांस ।
    बदलेगा भारत कभी, यही आश  विश्वास ।।
(२) भारत को बदलो ,उठो ,चलो हमारे साथ ।
     होरी बढ़ो , बढ़ो ,बढ़ो ,लिये हाथ में हाथ ।।
(३) जनसंख्या इस भाँति ,यदि, बढ़ी और श्रीमान ।
     मेले   से बन   जायेंगे , सारे  नगर  सचान ।।
(४) भारत में होगा कभी , जनसंख्या विस्फोट ।
      होरी हो चहुं ओर बस , भारी लूट खसोट ।।
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राजकुमार सचान होरी 
      

Agriculture industry

4 /कृषि को उद्योग का दर्जा
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      कृषि के समस्त कार्य एक उद्योग की तरह हैं । लगातार पूंजी निवेश , स्रम , उत्पादन आदि समस्त क्रियायें उद्योगों की भाँति होती हैं । समर्थन मूल्य भी मज़बूरी मे ही सही सरकारों द्वारा जारी किये जाते हैं । कृषक और कृषि असंगठित क्षेत्र हैं इस लिये उद्योंगों की तरह अपने मूल्य का निर्धारण नहीं कर पाता है । लागतें बढ़ती जाती हैं जिससे शुद्ध आय कम हो जाती है । कीमतों का निर्धारण आय और व्यय के आधार पर किया जाता है परन्तु कृषि में ऐसा नहीं हो रहा है । यहाँ किसान फ़सलें बो तो सकता है पर उनकी कीमत उद्योंगो की तरह स्वयं निर्धारित नहीं कर सकता ।
                    कृषि के अंतर्गत लागत अधिक और आय कम होने के कारण किसानों का जीवनयापन तक कठिन है । देश भर  में किसानों के द्वारा आत्महत्या की घटनायें भी प्रकाश में आती रहती हैं । कृषि को लाभकारी बनाना किसानों के लिये तो ज़रूरी है ही समस्त देश के विकास और अनाज उपलब्धता के लिये भी आवश्यक ही नहीं अपितु अनिवार्य भी है ।
            एक उद्योग की तरह बैंकों से लोन भी स्वीकृत नहीं हो सकता ।कृषि को स्वयं बैंक घाटे का क्षेत्र मानता है। परन्तु दोनों स्थितियों से किसान को मुक्ति मिल सकती है यदि कृषि को उद्योग का दर्जा दे दिया जाय ।
                 राज कुमार सचान होरी
                राष्ट्रीय अध्यक्ष
                 बदलता भारत(INDIA CHANGES )
www.badaltabharat.com , horiindiachanges.blogspot.com